Story of farmer and traveler-किसान और यात्री की कहानी।
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एक गांव में एक दिनेश नाम का एक किसान था। वह अपने बेटा मोहन और अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने बेटा मोहन के साथ खेती करता था। बहुत सारे सालों से बारिश ना होने के कारण उसकी सारी फसल बेकार हो रही थी। और कर्जा भी बहुत हो गया था। फिर उसने सोचा कि हमें कोई और काम करना होगा। नहीं तो बहुत नुकसान में पड़ जाएंगे। तो बेटा मोहन बोला। पिताजी हमको तो और कोई तो काम आता नहीं है। तो हम करेंगे। दिनेश को कर्जे की इतनी चिंता हुई कि वह बीमार पड़ गया। तो फिर उसकी पत्नी अपने बेटा मोहन से बोली। बेटा बाजार जाकर बाजार से कोई सब्जियां ले आओ। तो मोहन मां कह कर वह बाजार चला जाता है सब्जियां खरीदने। मोहन बाजार मे जाकर देखता है। कि सभी सब्जियां बहुत महंगी है। कि वह कोई भी सब्जी खरीद नहीं सकता है।
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तो फिर उसने सोचा कि चलो दो अंडे खरीद लेते हैं। और आज इन अंडो की सब्जी बना कर खा लेंते है। फिर मोहन दो अंडे ले आया और अपनी मां को वह अंडा दिया। वह उसकी माता ने कहा यह तुम बेटा सिर्फ दो ही अंडे लाए हो। हम तीनों खाना कैसे खाएंगे। तो मोहन बोला कोई बात नहीं मां। जो है उसी से थोड़े थोड़े में गुजारा कर लेंगे। तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। मोहन बोला मैं देखता हूं मां। तो मोहन जाकर दरवाजा खोला। और देखता है कि एक आदमी खड़ा है। तो मोहन उस आदमी से पूछा आप कौन है भाई। हमारे घर क्यों आए हो। तो वह आदमी बोला मैं यात्री हूं। मेरे बहुत जोर से भूख लगी है। क्या कुछ खाने को मिलेगा। तो मोहन बोला हां क्यों नहीं आओ बैठो मेरी मां खाना बना रही है। तब तक आप लो थोड़ा पानी पी लो। तो आदमी पानी पिया और अंदर आ गया।
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और फिर वह आदमी बैठ गया। और तब तक मोहन की माता खाना बना कर ले आई। और फिर उस आदमी को खाने के लिए उन अंडों की सब्जी और चावल और रोटी दिया। यह तीन चीजें आदमी अंडा की सब्जी खाई और बोला वह। कितनी स्वादिष्ट है। या अंडा की सब्जी। वह आदमी जब खाना खा हुआ। तब उसने कहा। कि आज तुमने एक रात्रि को खाना खिला कर आप बहुत पुन्य का काम किया है। तो मोहन बोला या तो हमारा फर्ज है। तुम जैसे यात्रियों को खाना खिलाना। और आप बड़ी उम्मीद से हमारे घर आए थे। तो मैं आपको भूखे कैसे जाने देते। तो आदमी बोला बेटा तुम्हारा नाम क्या है। और तुम काम क्या करते हो। तो मोहन बोला भाई मेरा नाम मोहन है। और मैं अपने पिता के साथ खेती का काम करता हूं। और अब मैं कहीं काम की तलाश कर रहा हूं।
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क्योंकि कई सालो से बारिश ना होने के कारण। हमारी कोई भी फसले हो नहीं पाती हैं। और कर्ज भी बहुत हो गया है। इसीलिए मैं काम की तलाश करता हूं। जिससे पैसे कमऊ और उन पैसों से मैं अपना कर्ज उतार सकूं। आदमी बोला मेरा नाम सोहन लाल है। मेरा यही पास वाले गांव में एक होटल है। बेटा मोहन तुम्हारी मां इतना अच्छा भोजन पकाती है। तुम भी यही काम करो। और यहां पर कोई ढाबा भी नहीं है। मैं तुमको कुछ पैसे दे देता हूं। इन पैसों से तुम अपना काम शुरू करो। और जब तुम पैसे कमा लेना तो तुम मेरे पैसे लौटा देना। तो मोहन बोला धन्यवाद आपने मुझे नहीं उम्मीद और नई राह दिखाई। मोहन ने वही काम करने लगा और खूब पैसे कमाए। और सोहन लाल के भी पैसे लौटा दिए। और अपना कर्जा भी चुका दिया। और वह सभी खुशी खुशी से रहने लगे।
शिक्षा: अच्छा करने वालों के साथ अच्छा ही होता है।
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